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October 4, 2024नवरात्रि भारत के सबसे प्रमुख और पवित्र त्योहारों में से एक है, जो देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व शक्ति, भक्ति और साधना का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा के पहले स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और उनके नाम का अर्थ है ‘पर्वत की पुत्री’। उनका यह रूप शक्ति, स्थिरता और भक्ति का प्रतीक है।
माँ शैलपुत्री का स्वरूप
माँ शैलपुत्री का रूप अत्यंत सौम्य और दिव्य है। वे एक बैल की सवारी करती हैं और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है। शैलपुत्री को प्रकृति की देवी भी माना जाता है, जो धरती और वातावरण की शुद्धता की रक्षा करती हैं। उनके इस रूप से हम जीवन में स्थिरता और दृढ़ता की शिक्षा प्राप्त करते हैं।
माँ शैलपुत्री की कथा
माँ शैलपुत्री का जन्म राजा हिमालय के घर हुआ था। इससे पूर्व वे सती के रूप में जानी जाती थीं, जो भगवान शिव की पत्नी थीं। पौराणिक कथा के अनुसार, सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे, क्योंकि उनके पिता ने भगवान शिव का अपमान किया था। अगले जन्म में सती ने शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया और फिर से भगवान शिव से विवाह किया। माँ शैलपुत्री का यह जन्म उनकी असीम शक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
माँ शैलपुत्री की पूजा विधि
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा अत्यंत श्रद्धा और नियमों के साथ की जाती है। इस दिन भक्त घर में कलश स्थापना करते हैं, जो शुभता और समृद्धि का प्रतीक है। पूजा की विधि इस प्रकार है:
1. कलश स्थापना: सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है और फिर वहाँ कलश स्थापित किया जाता है। इस कलश में जल, आम के पत्ते, नारियल, और सुपारी रखी जाती है।
2. माँ शैलपुत्री का ध्यान: माँ शैलपुत्री का ध्यान कर उन्हें फूल, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित किया जाता है। उनके समक्ष लाल वस्त्र अर्पित करना शुभ माना जाता है, क्योंकि लाल रंग ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है।
3. मंत्र जाप: माँ शैलपुत्री के मंत्रों का जाप किया जाता है।
4. नैवेद्य अर्पण: माँ शैलपुत्री को घी का भोग लगाना विशेष शुभ माना जाता है। इस दिन भक्त घी का दीपक जलाकर माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जिससे जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
माँ शैलपुत्री की आराधना का महत्व
माँ शैलपुत्री की पूजा से भक्त को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि माँ शैलपुत्री की आराधना करने से भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और उसे जीवन में स्थिरता और संतुलन प्राप्त होता है। इस दिन किए गए उपवास और पूजा से भक्त की आत्मशक्ति जागृत होती है और उसे जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है।
निष्कर्ष
नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री की आराधना के साथ जीवन में स्थिरता, शांति और शक्ति का संदेश देता है। माँ शैलपुत्री की कृपा से भक्त अपने जीवन में स्थिरता, धैर्य और संतुलन पा सकते हैं। नवरात्रि के इस पावन पर्व का पहला दिन एक नई शुरुआत का प्रतीक है, जहाँ भक्त माँ के आशीर्वाद से अपनी साधना की यात्रा प्रारंभ करते हैं।