भगवान सुपार्श्वनाथ: जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर 

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 जैन धर्म में भगवान सुपार्श्वनाथ  को सातवें तीर्थंकर के रूप में पूजा जाता है उनका जीवन और उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों जैन अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं  

 भगवान सुपार्श्वनाथ का  जन्म इक्ष्वाकुवंश में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को विशाखा नक्षत्र में वाराणसी में हुआ थाइनकी माता का नाम पृथ्वी देवी और पिता का नाम राजा प्रतिष्ठ था।  

उनका बचपन साधारण राजकुमारों की तरह होकर धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्तियों से भरा हुआ था बचपन से ही वे भोग-विलास से विमुख होकर आत्मज्ञान की ओर अग्रसर रहे 

 

राजकाज और वैराग्य 

युवावस्था में भगवान सुपार्श्वनाथ ने अपने पिता के राज्य की जिम्मेदारियों को संभाला वे एक कुशल और न्यायप्रिय शासक थे वे अपने शासन में धर्म और नैतिकता का पालन करते थे, और प्रजा का हित उनके लिए सर्वोपरि था  

कुछ समय बाद उन्होंने यह समझ लिया कि संसार का यह सुख अस्थायी है और भौतिक सुखों में सच्ची शांति नहीं मिल सकती इस सत्य का बोध होते ही उन्होंने राज्य, धन और भोग-विलास का त्याग कर दिया और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए वैराग्य का मार्ग चुना  

 

दीक्षा और तपस्या 

राज्य त्यागने के बाद भगवान सुपार्श्वनाथ ने दीक्षा ली और सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर कठोर तपस्या का मार्ग अपनाया उन्होंने गहन ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मशुद्धि की दिशा में कदम बढ़ाया भगवान सुपार्श्वनाथ की तपस्या अत्यंत कठिन थी और उन्होंने अपनी इंद्रियों और इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त किया  

उनकी तपस्या से यह स्पष्ट होता है कि आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को अपनी इच्छाओं और मोह-माया का त्याग करना आवश्यक है उनके तप और साधना से वे समस्त संसार के लिए एक आदर्श बन गए, जिन्होंने यह दिखाया कि सच्ची शांति और मोक्ष केवल आत्मसंयम और तपस्या के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है 

 

 कैवल्य ज्ञान और तीर्थंकर पद 

कठोर तपस्या के बाद भगवान सुपार्श्वनाथ को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वे तीर्थंकर बने और उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से संसार को धर्म, सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह का मार्ग दिखाया  

भगवान सुपार्श्वनाथ के उपदेशों में अहिंसा, सत्य और धर्म के पालन पर विशेष जोर था उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए व्यक्ति को अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए और जीवन में संयम का पालन करना चाहिए उनके उपदेशों ने समाज में नैतिकता और धर्म के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य किया 

उनके उपदेश हमें यह सिखाते हैं कि केवल भौतिक इच्छाओं को त्यागकर ही हम आत्मा की सच्ची शांति और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं 

 

निष्कर्ष 

भगवान सुपार्श्वनाथ का जीवन और उनकी शिक्षाएं जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक आदर्श हैं उनके द्वारा दिखाए गए धर्म और सत्य के मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को शुद्ध और पवित्र बना सकते हैं भगवान सुपार्श्वनाथ ने अपने तप, संयम और ज्ञान से यह सिखाया कि आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए भौतिक सुखों का त्याग और तपस्या आवश्यक है उनका जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि हम भी धर्म के मार्ग पर चलकर आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं