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September 28, 2024 जैन धर्म के तीर्थंकरों में शीतलनाथ का विशेष स्थान है। इन्हें जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर के रूप में जाना जाता है। शीतलनाथ का नाम "शीतल" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "शांत" या "शीतलता"। यह उनके व्यक्तित्व और शिक्षाओं की विशेषता को दर्शाता है।
जीवन का संक्षिप्त परिचय
शीतलनाथ का जन्म भद्दिलपुर (इटखोरी) में हुआ था. उनके माता-पिता का नाम राजा द्राद्रथ और रानी नंदा था, लेकिन शीतलनाथ ने सांसारिक मोह-माया को छोड़कर आत्मज्ञान की ओर कदम बढ़ाया। उनके जीवन का उद्देश्य शांति, संयम और अहिंसा को फैलाना था।
शिक्षाएँ और उपदेश
शीतलनाथ ने अपने अनुयायियों को अहिंसा, सत्य, और संयम के महत्व पर जोर दिया। उनका मानना था कि वास्तविक सुख और शांति केवल आत्मा के शुद्धिकरण से प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मज्ञान की प्राप्ति का मार्ग बताया।
पूजा और अनुष्ठान
जैन धर्म में शीतलनाथ की पूजा विशेष महत्व रखती है। उनके समर्पित अनुयायी प्रतिवर्ष उनके जन्मोत्सव का आयोजन बड़े धूमधाम से करते हैं। इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना, सामुदायिक भक्ति और उपवासी अनुष्ठान किए जाते हैं।
समाज में योगदान
शीतलनाथ ने समाज में अहिंसा और शांति का संदेश फैलाने का कार्य किया। उनके विचारों ने जैन समाज के साथ-साथ अन्य धर्मों के अनुयायियों को भी प्रेरित किया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि व्यक्तिगत शांति से ही सामूहिक शांति की स्थापना की जा सकती है।
निष्कर्ष
जैन शीतलनाथ तीर्थंकर न केवल एक धार्मिक प्रतीक हैं, बल्कि वे मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें शांति, संयम, और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए वे सच्चे मार्गदर्शक हैं, और उनके योगदान को सदैव याद रखा जाएगा।