गणेश चतुर्थी का आठवां दिन: भक्ति और समर्पण का चरमोत्कर्ष
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September 16, 2024आमतौर पर दान करने को ही त्याग कहा व समझा जाता है। लेकिन त्याग और दान में महान् अन्तर है, दान किया जाता है किसी उद्देश्य के लिए, परोपकार के लिए जबकि त्याग किया जाता है संयम के लिए। दान करने से पुण्य बन्ध होता है, त्याग करना धर्म है। धन का लोभ नहीं छूटता वह एक लाख दान में देता है तो दो लाख कमाने को आतुर रहता है लेकिन त्यागी जो त्याग देता है फिर उसके चक्कर में नहीं रहता। त्याग होता है कषायों का, मोह-राग-द्वेष का, अहंकार का। आइए कुछ और बिंदुओं पर विचार करें:
- कषायों का त्याग: कषायें हमारे मन के विषैले भाव हैं जैसे कि क्रोध, लोभ, मोह, मान, माया आदि। उत्तम त्याग धर्म हमें इन कषायों को त्यागने का उपदेश देता है। जब हम इन कषायों को त्याग देते हैं, तो हमारा मन शांत और निर्मल हो जाता है।
- अहंकार का त्याग: अहंकार का मतलब है 'मैं' का भाव। हम अक्सर सोचते हैं कि हम ही सबसे अच्छे हैं और हम ही सबसे ज्यादा जानते हैं। उत्तम त्याग धर्म हमें अहंकार को त्यागने और सभी जीवों को समान समझने का उपदेश देता है।
- मोह का त्याग: मोह का मतलब है किसी वस्तु या व्यक्ति से अत्यधिक लगाव। उत्तम त्याग धर्म हमें मोह से मुक्त होने का उपदेश देता है। जब हम मोह से मुक्त हो जाते हैं, तो हम किसी भी तरह के दुःख से मुक्त हो जाते हैं।
उत्तम त्याग धर्म के लाभ:
- आंतरिक शांति: जब हम त्याग करते हैं, तो हमारा मन शांत और निर्मल हो जाता है।
- आत्मज्ञान: उत्तम त्याग धर्म हमें अपने आप को जानने और समझने में मदद करता है।
उत्तम त्याग धर्म का अभ्यास:
- ध्यान और योग: ध्यान और योग हमें अपने मन को शांत करने और आंतरिक शांति प्राप्त करने में मदद करते हैं।
- सेवा: दूसरों की सेवा करने से हम अपने अहंकार को कम करते हैं और दूसरों के प्रति करुणा का भाव विकसित करते हैं।
निष्कर्ष:
उत्तम त्याग धर्म एक ऐसा मार्ग है जो हमें आंतरिक शांति, मोक्ष और समाज में योगदान देने का अवसर प्रदान करता है। जब हम त्याग करते हैं, तो हम अपने आप को और दूसरों को भी खुश करते हैं।